आयुर्वेद के अनुसार पानी पीने का सही तरीका और उचित मात्रा
- Agron Ayurveda
- Apr 24
- 9 min read
आयुर्वेद के अनुसार पानी पीने का सही तरीका और उचित मात्रा
आयुर्वेद, भारतीय चिकित्सा की एक प्राचीन प्रणाली है, जो स्वास्थ्य और कल्याण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है। इस प्रणाली में आहार और जीवनशैली के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत मार्गदर्शन दिया गया है, जिसमें पानी पीने का तरीका और इसकी उचित मात्रा भी शामिल है। पानी, जो जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है, का सेवन यदि आयुर्वेदिक सिद्धांतों के अनुसार किया जाए तो यह स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी हो सकता है। यह रिपोर्ट आयुर्वेद के अनुसार पानी पीने के सही तरीके और दिन भर में इसकी उचित मात्रा पर विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करती है।आयुर्वेद के अनुसार पानी पीने का सही तरीका और उचित मात्रा

1. आयुर्वेद के अनुसार पानी पीने का सही तरीका
आयुर्वेद में पानी पीने के तरीके को लेकर कई महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं, जिनका पालन करने से शरीर को अधिकतम लाभ मिल सकता है। ये नियम पानी के तापमान, पीने के समय, पीने के तरीके और पीने की स्थिति जैसे विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित हैं।
पानी का तापमान
आयुर्वेद सामान्यतः कमरे के तापमान पर या थोड़ा गर्म पानी पीने की सलाह देता है 1। इसका मुख्य कारण यह है कि आयुर्वेद में पाचन को 'अग्नि' माना जाता है, जो शरीर की आंतरिक ऊष्मा है। माना जाता है कि ठंडा पानी इस अग्नि को मंद कर सकता है, जिससे पाचन प्रक्रिया धीमी हो जाती है और पोषक तत्वों का अवशोषण ठीक से नहीं हो पाता 2। इसके विपरीत, गर्म पानी पाचन अग्नि को उत्तेजित करने में मदद करता है, जिससे भोजन आसानी से पचता है और शरीर को अधिक ऊर्जा मिलती है 1।
बर्फ-ठंडा पानी पीने को आयुर्वेद में आमतौर पर हतोत्साहित किया जाता है 2। ऐसा माना जाता है कि यह न केवल पाचन को बाधित करता है, बल्कि कब्ज और हृदय संबंधी समस्याओं जैसी स्वास्थ्य जटिलताओं का भी कारण बन सकता है 2। शरीर को ठंडे पानी को गर्म करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है, जो पाचन प्रक्रिया से ध्यान भटका सकती है।
मौसम के अनुसार पानी के तापमान में बदलाव की भी सलाह दी जाती है। सर्दियों में, गर्म पानी पीना विशेष रूप से फायदेमंद माना जाता है, क्योंकि यह शरीर को अंदर से गर्म रखता है और पाचन को बेहतर बनाता है 3। गर्मियों में, कमरे के तापमान पर पानी पीना आमतौर पर पर्याप्त होता है और यह शरीर को ठंडक प्रदान करता है बिना पाचन अग्नि को कमजोर किए 3।
पानी को उबालना भी आयुर्वेद में महत्वपूर्ण माना गया है 8। उबला हुआ पानी न केवल शुद्ध होता है, बल्कि ऐसा माना जाता है कि इसमें विशेष गुण आ जाते हैं जो इसे आसानी से अवशोषित होने योग्य बनाते हैं और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करते हैं 8। उबलने की प्रक्रिया पानी को ऊर्जा से भर देती है और इसे 'सूक्ष्म' बनाती है, जिससे यह शरीर के सूक्ष्म चैनलों में गहराई तक प्रवेश कर पाता है और उनकी सफाई करता है 8।
तालिका 1: आयुर्वेद के अनुसार पानी का तापमान
पहलू | आयुर्वेद के अनुसार जानकारी |
सामान्य अनुशंसा (General Recommendation) | गुनगुना या कमरे का तापमान (Warm or room temperature) |
गर्मी (Summer) | कमरे का तापमान (Room temperature) |
सर्दी (Winter) | गुनगुना (Warm) |
पित्त दोष (Pitta Dosha) | ठंडा या कमरे का तापमान (Cool or room temperature) |
कफ दोष (Kapha Dosha) | गुनगुना (Warm) |
वात दोष (Vata Dosha) | गुनगुना (Warm) |
पीने का समय
आयुर्वेद में भोजन के समय पानी पीने को लेकर विशेष नियम बताए गए हैं। भोजन के तुरंत पहले या बाद में बड़ी मात्रा में पानी पीने की सलाह नहीं दी जाती है 2। इसका कारण यह है कि ऐसा करने से पाचन अग्नि मंद हो सकती है 11। भोजन से ठीक पहले पानी पीने से पेट भर जाता है, जिससे भूख कम हो सकती है, और भोजन के तुरंत बाद पानी पीने से पाचन एंजाइम पतले हो सकते हैं, जिससे भोजन का पाचन और पोषक तत्वों का अवशोषण मुश्किल हो जाता है 11।
भोजन करने के लगभग 30 मिनट पहले या 1 घंटे बाद पानी पीना उचित माना जाता है 5। भोजन से पहले पानी पीने से पाचन तंत्र तैयार होता है, जबकि भोजन के बाद एक निश्चित समय तक इंतजार करने से भोजन को ठीक से पचने का समय मिल जाता है बिना पाचन रसों के अत्यधिक पतला हुए 11।
भोजन के दौरान, यदि प्यास लगे तो थोड़ा-थोड़ा गर्म पानी पीना पाचन में सहायक हो सकता है 11। यह भोजन को नरम करने और उसे आसानी से नीचे उतारने में मदद करता है, साथ ही पाचन अग्नि को भी बहुत अधिक शांत नहीं करता है 14।
सुबह उठते ही पानी पीना (उषापान) आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण अभ्यास माना जाता है 1। यह शरीर से रात भर जमा हुए विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने और चयापचय को शुरू करने में मदद करता है 1। सुबह खाली पेट गर्म पानी पीना आंतों को साफ करने और शरीर को हाइड्रेटेड रखने में विशेष रूप से लाभकारी होता है 6।
भोजन के बीच में पानी पीना भी स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है, क्योंकि यह शरीर को हाइड्रेटेड रखता है और पाचन प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने में मदद करता है 16।
तालिका 2: आयुर्वेद के अनुसार पानी पीने का समय
पहलू | आयुर्वेद के अनुसार जानकारी |
भोजन से पहले (Before Meals) | 30 मिनट पहले (कफ के लिए) (30 minutes before (for Kapha)), तुरंत पहले बड़ी मात्रा में पीने से बचें (Avoid drinking large amounts immediately before) |
भोजन के दौरान (During Meals) | थोड़ा-थोड़ा गर्म पानी सिप करें (Sip small amounts of warm water) |
भोजन के बाद (After Meals) | भोजन के 30 मिनट से 1 घंटे बाद (विशेषकर वात के लिए) (30 minutes to 1 hour after meals (especially for Vata)) |
सुबह (उषापान) (Morning (Ushapan)) | विषहरण के लिए अत्यधिक अनुशंसित (Highly recommended for detoxification) |
भोजन के बीच में (Between Meals) | अच्छे स्वास्थ्य और आसान पाचन के लिए फायदेमंद (Beneficial for good health and easy digestion) |
पीने का तरीका
आयुर्वेद पानी को धीरे-धीरे सिप करके पीने पर जोर देता है, न कि एक ही बार में गट-गट करके 1। ऐसा माना जाता है कि धीरे-धीरे पानी पीने से यह लार के साथ अच्छी तरह मिल जाता है, जो पाचन की प्रक्रिया में पहला कदम है। यह शरीर को पानी को बेहतर ढंग से अवशोषित करने और अचानक से सिस्टम पर दबाव डालने से भी बचाता है 1। जल्दी-जल्दी पानी पीने से पेट फूल सकता है 6।
प्यास लगने पर ही पानी पीना आयुर्वेद का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है 1। शरीर अपनी जरूरतों के अनुसार प्यास का संकेत देता है, और केवल तभी पानी पीना चाहिए जब वास्तव में इसकी आवश्यकता हो। बिना प्यास के अत्यधिक पानी पीने से किडनी पर अनावश्यक दबाव पड़ सकता है और शरीर में इलेक्ट्रोलाइट का संतुलन बिगड़ सकता है 16।
पानी को तांबे या चांदी के बर्तन में संग्रहित करके पीना भी आयुर्वेद में अनुशंसित है 5। ऐसा माना जाता है कि इन धातुओं में पानी रखने से यह सकारात्मक रूप से चार्ज हो जाता है और शरीर के तीनों दोषों (वात, पित्त, कफ) को संतुलित करने में मदद करता है 15। तांबे में जीवाणुरोधी और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देते हैं, जबकि चांदी शरीर को ठंडा करती है और पाचन में सहायता करती है 15।
पीने की स्थिति
आयुर्वेद दृढ़ता से सलाह देता है कि पानी हमेशा बैठकर पीना चाहिए, न कि खड़े होकर 1। ऐसा माना जाता है कि खड़े होकर पानी पीने से शरीर में तरल पदार्थों का संतुलन बिगड़ सकता है, जिससे जोड़ों में अतिरिक्त तरल जमा हो सकता है और गठिया होने का खतरा बढ़ सकता है 6। बैठकर पानी पीने से मांसपेशियां और तंत्रिका तंत्र अधिक आराम की स्थिति में होते हैं, जिससे पाचन बेहतर होता है और गुर्दे भी पानी को ठीक से फिल्टर कर पाते हैं 15। खड़े होकर पानी पीने से पानी तेजी से पेट में जाता है, जिससे पेट की नसों में तनाव हो सकता है और विषाक्त पदार्थों का उत्सर्जन बढ़ सकता है 26।
बैठकर पानी पीने से शरीर को इसे अधिक प्रभावी ढंग से अवशोषित करने और ऊतकों तक ठीक से वितरित करने में मदद मिलती है 1। यह एक अधिक शांत और केंद्रित तरीका है जिससे शरीर जलयोजन की प्रक्रिया का बेहतर लाभ उठा पाता है 21।
2. दिन भर में पानी की उचित मात्रा
आयुर्वेद में दिन भर में पानी की उचित मात्रा व्यक्ति की प्रकृति (दोष), मौसम और स्वास्थ्य की स्थिति जैसे विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है 7। आयुर्वेद एक व्यक्ति की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार पानी के सेवन की सिफारिश करता है, न कि सभी के लिए एक समान मात्रा।
व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार
प्रत्येक व्यक्ति की आयुर्वेदिक प्रकृति (वात, पित्त, कफ) अलग होती है, और इसलिए उनकी पानी की आवश्यकताएं भी भिन्न हो सकती हैं 7।
तालिका 3: आयुर्वेदिक दिशानिर्देश: प्रकृति के आधार पर दैनिक पानी की मात्रा
पहलू | आयुर्वेद के अनुसार जानकारी |
वात (Vata) | थोड़ा अधिक, अक्सर भोजन के बाद गर्म पानी (Slightly more, often warm water after meals) 3 |
पित्त (Pitta) | मध्यम, ठंडा या कमरे का तापमान वाला पानी (Moderate, cool or room temperature water) 3 |
कफ (Kapha) | मध्यम, अक्सर भोजन से पहले गर्म पानी (Moderate, often warm water before meals) 3 |
सामान्य अनुशंसा (General Recommendation) | प्यास लगने पर पिएं (Drink when thirsty) 1 |
वात प्रकृति के व्यक्तियों में सूखापन की प्रवृत्ति होती है, इसलिए उन्हें इसे दूर करने के लिए थोड़ी अधिक पानी की आवश्यकता हो सकती है। उनके लिए गर्म पानी विशेष रूप से फायदेमंद होता है, और इसे अक्सर भोजन के बाद पाचन में सहायता के लिए अनुशंसित किया जाता है 3।
पित्त प्रकृति के व्यक्तियों में गर्मी और तीव्रता अधिक होती है, इसलिए उन्हें अपने आंतरिक तापमान को संतुलित करने के लिए मध्यम मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। उनके लिए ठंडा या कमरे के तापमान का पानी आदर्श होता है, और वे दूसरों की तुलना में अधिक प्यास महसूस कर सकते हैं 3।
कफ प्रकृति के व्यक्तियों में भारीपन और जल प्रतिधारण की प्रवृत्ति होती है, इसलिए उन्हें पानी का सेवन मध्यम मात्रा में करना चाहिए। उनके लिए गर्म पानी फायदेमंद हो सकता है, और इसे अक्सर भोजन से पहले पीने की सलाह दी जाती है ताकि अधिक खाने से बचा जा सके 3।
हालांकि, सामान्य तौर पर, आयुर्वेद आठ गिलास पानी प्रतिदिन पीने जैसे निश्चित नियमों के बजाय, प्यास लगने पर पानी पीने की सलाह देता है 1। शरीर की प्राकृतिक संकेतों को सुनना और उसके अनुसार पानी पीना अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
मौसम के अनुसार
मौसम भी पानी की उचित मात्रा को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है 5।
गर्म जलवायु और गर्मियों के दौरान, शरीर को अधिक पसीना आता है, इसलिए जलयोजन बनाए रखने के लिए पानी का सेवन बढ़ाना चाहिए 5।
ठंडे महीनों में, पानी का सेवन थोड़ा कम किया जा सकता है, और गर्म पानी पीना अधिक आरामदायक और फायदेमंद हो सकता है 6।
हालांकि, कुछ आयुर्वेदिक ग्रंथों में यह भी उल्लेख है कि शरद (शरद ऋतु) और निदाघ (ग्रीष्म ऋतु) के दौरान स्वस्थ व्यक्तियों को भी अन्य मौसमों की तुलना में कम पानी पीना चाहिए 22। यह सामान्य सिफारिश के विपरीत प्रतीत होता है कि गर्मियों में पानी का सेवन बढ़ाना चाहिए, और इस विरोधाभास को स्पष्ट करने के लिए अधिक शोध की आवश्यकता हो सकती है। संभवतः, इसका संबंध इन विशेष मौसमों के दौरान अनुशंसित विशिष्ट आहार और जीवनशैली प्रथाओं से हो सकता है।
सेहत की स्थिति के अनुसार
स्वास्थ्य की स्थिति भी दिन भर में पानी की उचित मात्रा को प्रभावित कर सकती है 5।
पसीना आना, कब्ज, मुंह सूखना या गहरे पीले रंग का मूत्र जैसे लक्षण दिखाई देने पर पानी का सेवन बढ़ाना आवश्यक हो सकता है, क्योंकि ये निर्जलीकरण के संकेत हैं 5।
दूसरी ओर, कुछ स्वास्थ्य स्थितियों जैसे दस्त, बवासीर, सूजन या शोफ में पानी का सेवन सीमित करने की आवश्यकता हो सकती है 22। इन स्थितियों में, अत्यधिक पानी शरीर में तरल पदार्थों के संतुलन को और बिगाड़ सकता है।
सुबह खाली पेट गर्म पानी पीना औषधीय महत्व रखता है और यह पाचन और नींद में सुधार कर सकता है 2।
3. निष्कर्ष
आयुर्वेद के अनुसार पानी पीने का सही तरीका और उचित मात्रा व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य और कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है। पानी का तापमान, पीने का समय, पीने का तरीका और पीने की स्थिति, ये सभी पहलू पाचन, जलयोजन और शरीर के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सामान्य तौर पर, आयुर्वेद गर्म या कमरे के तापमान पर पानी पीने, भोजन के आसपास पानी पीने के समय का ध्यान रखने, धीरे-धीरे सिप करके पानी पीने और हमेशा बैठकर पानी पीने की सलाह देता है। दिन भर में पानी की उचित मात्रा व्यक्ति की प्रकृति, मौसम और स्वास्थ्य की स्थिति के अनुसार अलग-अलग होती है, और शरीर की प्यास के संकेतों को सुनना सबसे महत्वपूर्ण है। जबकि गर्मियों में पानी का सेवन बढ़ाने की सलाह दी जाती है, कुछ आयुर्वेदिक ग्रंथों में शरद और ग्रीष्म ऋतु में कम पानी पीने की बात भी कही गई है, जिस पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। आयुर्वेदिक सिद्धांतों के अनुसार पानी का सेवन करना एक समग्र दृष्टिकोण है जो शरीर के आंतरिक संतुलन को बनाए रखने और बेहतर स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद करता है।
Commentaires